खेती—किसानी(संवाददाता)। मध्यप्रदेश के ग्रामीण अंचलों में आर्थिक समृद्धि और सामाजिक बदलाव की नई क्रांति देखी जा सकती है। पहले कर्ज के लिए साहूकारों पर निर्भर रहने वाले लाखों गरीब ग्रामीण परिवार विभिन्न आजीविका गतिविधियों के जरिये अब 3 हजार से 15 हजार रुपये माह की आय प्राप्त कर रहे हैं। कई परिवारों की सालाना आमदनी एक लाख रुपये से भी अधिक हो गई है। प्रदेश में ग्रामीण परिवारों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिये 'लखपति महिला क्लब' बनाये गये हैं। आने वाले पाँच वर्ष में करीब 10 लाख से अधिक परिवार इस क्लब का हिस्सा बन जायें, इस मकसद से सुनियोजित प्रयास हो रहे हैं।
प्रदेश में जिला गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (डीपीआईपी) और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में अब तक करीब 70 हजार से अधिक स्व-सहायता समूह का गठन हो चुका है। गाँवों में स्व-सहायता समूहों की मदद से संचालित आजीविका गतिविधियों से लाखों गरीब परिवारों के जीवन में सुखद बदलाव लाया जा रहा है। यह समूह गरीब ग्रामीण परिवारों के आर्थिक संवर्द्धन के प्रयासों के साथ-साथ गाँवों के समग्र विकास और सामाजिक बदलाव में भी सशक्त भूमिका निभा रहे हैं। स्व-सहायता समूहों की मदद से गरीब महिलाओं को मिले छोटे-छोटे कर्ज से अनेक ग्रामीण परिवार आर्थिक रूप से सशक्त बन चुके हैं।
मध्यप्रदेश में स्व-सहायता समूहों द्वारा ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रयासों से ग्रामीण परिदृश्य में भी नया बदलाव आया है। ग्राम सभाओं में अब ग्रामीण महिलाओं की व्यापक मौजूदगी और ग्राम विकास के विभिन्न फैसलों में उनकी दमदार भागीदारी से गाँवों की तस्वीर बदल रही है। सरकारी दफ्तरों और विकास से जुड़े संस्थानों में भी स्व-सहायता समूह की सदस्य महिलाओं को समुचित आदर-सम्मान मिलता है। आत्म-विश्वास से भरपूर यह महिलाएँ अपने-अपने घरों की जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद चूल्हा-चौखट से बाहर निकल कर पंचायत से कलेक्टर ऑफिस तक जाकर अधिकारों की बात करने में किसी से पीछे नहीं रहती। वह सरकारी अफसरों और जन-प्रतिनिधियों से मिलकर गॉव के विकास के मुद्दों पर बेहिचक बातचीत करने लगी हैं।
स्व-सहायता समूहों ने इस बदलाव के लिये महिलाओं को सुनियोजित रूप से संगठित और प्रशिक्षित किया है। आजीविका कार्यक्रमों में शामिल गाँवों में छोटे-छोटे स्व-सहायता समूह बनाये गये हैं। समूह की सदस्य महिलाएँ अपनी बचत राशि जमा करती है, जिससे समूह की अन्य महिला सदस्यों को उनकी जरूरत के समय कर्ज मुहैया करवाया जाता है। स्व-सहायता समूह ग्राम उत्थान समिति से जुड़कर बैंकों से वित्तीय मदद हासिल करते हैं। समूह की सदस्य महिलाएँ समय पर कर्ज वापसी के लिये भी जागरूक भूमिका निभाती है। ग्राम उत्थान समितियाँ सामुदायिक संगठन से जुड़कर बड़े पैमाने पर आजीविका गतिविधियों का क्रियान्वयन कर रही है।
मध्यप्रदेश में स्व-सहायता समूहों द्वारा ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रयासों से ग्रामीण परिदृश्य में भी नया बदलाव आया है। ग्राम सभाओं में अब ग्रामीण महिलाओं की व्यापक मौजूदगी और ग्राम विकास के विभिन्न फैसलों में उनकी दमदार भागीदारी से गाँवों की तस्वीर बदल रही है। सरकारी दफ्तरों और विकास से जुड़े संस्थानों में भी स्व-सहायता समूह की सदस्य महिलाओं को समुचित आदर-सम्मान मिलता है। आत्म-विश्वास से भरपूर यह महिलाएँ अपने-अपने घरों की जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद चूल्हा-चौखट से बाहर निकल कर पंचायत से कलेक्टर ऑफिस तक जाकर अधिकारों की बात करने में किसी से पीछे नहीं रहती। वह सरकारी अफसरों और जन-प्रतिनिधियों से मिलकर गॉव के विकास के मुद्दों पर बेहिचक बातचीत करने लगी हैं।
स्व-सहायता समूहों ने इस बदलाव के लिये महिलाओं को सुनियोजित रूप से संगठित और प्रशिक्षित किया है। आजीविका कार्यक्रमों में शामिल गाँवों में छोटे-छोटे स्व-सहायता समूह बनाये गये हैं। समूह की सदस्य महिलाएँ अपनी बचत राशि जमा करती है, जिससे समूह की अन्य महिला सदस्यों को उनकी जरूरत के समय कर्ज मुहैया करवाया जाता है। स्व-सहायता समूह ग्राम उत्थान समिति से जुड़कर बैंकों से वित्तीय मदद हासिल करते हैं। समूह की सदस्य महिलाएँ समय पर कर्ज वापसी के लिये भी जागरूक भूमिका निभाती है। ग्राम उत्थान समितियाँ सामुदायिक संगठन से जुड़कर बड़े पैमाने पर आजीविका गतिविधियों का क्रियान्वयन कर रही है।
2 comments:
मै हमेशा यह कहते आया हूँ की क्ले को गर्मियों में इकठा कर पाउडर बना कर उसके सीड बाल बना लेना चाहिए। किन्तु अनेक लोगों को क्ले मिलने और पहचानने में तकलीफ हो रही है इसलिए मेने सलाह दी है की खेत की मेड की मिट्टी जो अनेक सालो से जुताई से बची है जिसमे केंचुओं के घर रहते हैं को बरसात में ले आएं और उनकी सीड बाल बनाकर बुआई कर ली जाये.
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Hi i like your post realy i have read first time Thanks for sharing keep up the good work.
गरीब किसान परिवार"
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