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Monday, July 12, 2010

खाद्य, बीज और जैव-विविधता संबंधी विधेयक राष्ट्रीय बहस होना आवश्यक

 खाद्य सुरक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन में केन्द्र सरकार से आग्रह
खाद्य सुरक्षा विधेयक, बीज विधेयक और राष्ट्रीय जैव-विविधता नियमन विधेयक जल्दबाजी में पारित नहीं किये जाना चाहिये। इन प्रस्तावित कानूनों के दीर्घगामी परिणाम होंगे। इसलिये इस पर राष्ट्रीय बहस होना आवश्यक है ताकि राष्ट्र और जनता के व्यापक हितों का संरक्षण सुनिश्चित हो सके।
इस आशय के विचार आज यहां प्रशासन अकादमी में खाद्य सुरक्षा विषय पर आयोजित राष्ट्रीय विमर्श में विभिन्न वक्ताओं ने व्यक्त किये। इस सम्मेलन का आयोजन स्वैच्छिक संगठन आशा, सिकोईडिकान और पैरवी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इसमें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित केरल, कर्नाटक, आन्ध्र, गोवा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और गुजरात राज्यों के लगभग 150 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

वन मंत्री श्री सरताज सिंह ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि यह बड़ी दुखद स्थिति है कि राष्ट्र, समाज और जनता के हितों की उपेक्षा करते हुए केन्द्र सरकार जल्दबाजी में ये तीनों विधेयक पारित करवाना चाहती है। राज्य सरकारों का अभिमत लिये बिना ऐसे महत्वपूर्ण विषयों से संबंधित कानून को बनने की दिशा में आगे बढ़ना अलोकतांत्रिक होगा।

उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यूपीए सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून सिर्फ 37.2 फीसदी जनता को ही सस्ता अनाज मुहैया करायेगा। जबकि एक लोकतांत्रिक और लोककल्याणकारी सरकार की यह जिम्मेवारी और जबावदारी होना चाहिये कि कोई भी आदमी, औरत और बच्चा भूखा या कुपोषित नहीं रहेगा।

श्री विजयवर्गीय ने आगे कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक में अनेक खामियां हैं। इसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये दिशा निर्देशों की भी अनदेखी की गई है। उन्होंने कहा कि बीज विधेयक राज्य सभा में लंबित है और संसद के मानसून-सत्र में पटल पर लाया जाने वाला है।

इस विधेयक में बीजों के मूल्यों एवं रायल्टी के नियमन से संबंधित अधिकारों, किसानों को नकली एवं खराब बीज से होने वाली हानि से सुरक्षा, जैव-विविधता संरक्षण और स्थानीय स्थितियों में बीज परीक्षण से संबंधित प्रावधान नहीं होना अत्यन्त ही चिन्ताजनक है।

श्री विजयवर्गीय ने जैव-विविधता नियमन विधेयक को अमरीका से हुई खाद्य सुरक्षा एवं कृषि प्रसार संधि से प्रेरित बताते हुए कहा कि इसका मूल उद्देश्य भारत में अमरीका के जैव संवर्धित (जीएम) खाद्य पदार्थों एवं कृषि उत्पादों का विस्तार करना है। 

विधेयक में जीएम खाद्य से संबंधित जानकारी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे से बाहर रखी गयी है। विधेयक में प्रस्तावित तीन सदस्यीय समिति को किसी भी राज्य सरकार के निर्णय को खारिज करने में सक्षम बनाने का प्रावधान है।

सम्मेलन में प्रस्तावित तीनों विधेयकों पर तीन सत्रों में विचार-विमर्श हुआ। इस विचार-विमर्श में जयपुर हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री पी.सी. जैन, बायोटेक्नोलॉजी एण्ड फूड सिक्योरिटी फोरम के श्री डॉ. देवेन्द्र शर्मा, सिकोईडिकान जयपुर के श्री शरद जोशी, पैरवी दिल्ली के श्री अजय झा में भाग लेते हुये कहा कि केन्द्र सरकार को इन प्रस्तावित विधेयकों पर विभिन्न राजनैतिक दलों से उनका अधिकारिक दृष्टिकोण प्राप्त करने के गंभीर प्रयास करना चाहिए। 

इन विधेयकों पर अभी तक राज्य सरकारों का भी अभिमत नहीं लिया गया है। प्रस्तावित बीज विधेयक को 11 राज्य सरकारें अस्वीकार कर चुकी हैं। इसके बावजूद केन्द्र सरकार इन विधेयकों को पारित करवाने की जल्दी में है।

सम्मेलन में विभिन्न वक्ताओं द्वारा यह विचार व्यक्त किया गया कि प्रस्तावित कानून उत्पादन के पक्ष को ध्यान में रखे बगैर ही खाद्य सुरक्षा देने की बात करता है। वास्तव में उत्पादन, खरीदी और वितरण तीनों को एक साथ ध्यान में रखना चाहिए। 

सम्मेलन में खेती को पुनर्जीवित करने और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये जनवितरण प्रणाली के विस्तार का सुझाव दिया गया। कृषि के कम्पनीकरण, जीनांत्रित (जीएम/बीटी) बीजों, खाद्यान्न में वायदा बाजार पर रोक के साथ केन्द्र सरकार से मांग की गई कि उसे निजी क्षेत्र के साथ ऐसा कोई अनुबंध नहीं करना चाहिए जिससे हितों का टकराव हो।

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