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Saturday, July 3, 2010

किसानों को हरी खाद का उपयोग करने की सलाह

 प्राकृतिक पोषण को हरी खाद की फसल कहते हैं
प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा दिये जाने के लिये लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुये किसान कल्याण विभाग ने किसानों को हरी खाद का लाभ बताते हुये इसके उपयोग करने की सलाह दी है।
किसान कल्याण विभाग द्वारा किसानों को हरी खाद के उपयोग के संबंध में बताया गया है कि हरी खाद से भूमि के संरचना सुधरती है और उर्वरा शक्ति बढ़ती है। खेतों से यदि हम अपने पोषण के लिये बहुत कुछ जुटा लेते हैं तो पौधे भी अपने लिये आवश्यक भोजन का प्रबंध अन्य पौधों की दम पर कर सकते हैं।

इस तरह के प्राकृतिक पोषण को हरी खाद की फसल कहते हैं। एक स्वस्थ और जीवित मृदा की पहचान उसमें उपस्थित जैवांश से ही होती है। अनेक ऐसी फसलें हैं जो जल्दी से मिट्टी में घुल मिल कर उसमें उम्दा किस्म की खाद बना देती हैं। इनकी जड़ों में नत्रजन का लाभ भी आने वाली फसल को मिल जाता है। 

सनई, ढेंचा, लोबिया, उड़द, मूंग तथा ग्वार जैसी हरी खाद बनाने वाली फसलें प्राय: अप्रैल से जुलाई अवधि में बोई जाती हैं जिनमें काफी बड़ी मात्रा में नत्रजन अगली फसल को मिल जाता है। इस कारण भूमि की दशा भी मुलायम हो जाती है। इन बोई गई हरी खाद की फसलों को 30 से 45 दिन की अवस्था पर पलटना पड़ता है जिससे ये भूमि में मिलकर तथा मचाई जाने पर शीघ्र खाद में तब्दील हो जाती है।

धन की कतार में बोई जाने वाली फसल के साथ हरी खाद बोने पर बियासी के समय यह फसल हल या पैरों से रौंद कर भूमि में मिला सकते हैं। इस तरह से हरी खाद बनाने से न केवल आर्गेनिक नत्रजन, स्फुर और पोटाश जैसे मुख्य तत्व ही पौधों को मिलते हैं बल्कि गंधक, चूना, मैग्नीशियम, जस्ता, आयरन, मैंगनीज तथा कॉपर जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व भी सरलात से प्राप्त हो जाते हैं। हरी खाद के लिये बीज कृषि विभाग द्वारा अनुदान पर उपलब्ध कराये जाने की व्यवस्था है।

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