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Friday, July 2, 2010

धान के अधिक उत्पादन के लिए अपनाएं "श्री" पद्धति

 किसानों को दो से तीन गुना अधिक धान का उत्पादन मिल रहा है
मेडागास्कर से निकलकर भारत तक आ पहुँची धान उत्पादन की आधुनिक तकनीकी एस.आर.आई. जिसका स्वेदशीकरण 'श्री' नाम देकर किया गया है। इसके द्वारा किसानों को दो से तीन गुना अधिक धान का उत्पादन मिल रहा है।
इसी तकनीक के कारण बहुत बड़ी संख्या में किसानों ने अपनी अन्य फसलों के स्थान पर धान बोना भी शुरू कर दिया है। कम पानी, कम बीज, कम उर्वरक और कम अवधि के कारण यह पद्धति किसानों ने पसन्द की है।

कृषि विभाग ने भी अपने प्रशिक्षणों द्वारा किसानों को 'श्री' पद्धति के लिए प्रोत्साहित करने के साथ गहन प्रशिक्षण दिए है जिसका प्रत्यक्ष लाभ किसानों को मिल रहा है। एक हेक्टेयर खेत के लिए केवल 5 किलो उपचारित किए हुए बीज की नर्सरी 100 वर्गमीटर में लगाकर 10-10 दिन की पौध अवस्था रोपाई की जाती है।

इस तरह से जड़े भी खूब फैलती है और कंसे भी ज्यादा फूटते है। पौधों को रोपाई वर्गाकार 25 से 30 सेन्टीमीटर दूरी पर करते हैं। एक गड्डे में एक ही पौधा लगाना होता है, प्रति दो मीटर के अंतराल से जल निकास के लिए लगभग एक फिट गहरी नाली बनाई जाना जरूरत के समय सिंचाई के लिए भी काम आता है।

कार्बनिक खादें जैसे कम्पोस्ट हरी खाद बायोगैस स्लरी आदि का अधिक प्रयोग करना अच्छा होता है। जैविक खादों की पूर्ति ठीक तरीके से न कर पाये तो प्रति हेक्टेयर नत्रजन 80 किलोग्राम, फासफोरस 60 किलोग्राम और पोटाश 40 किलोग्राम के अलावा जिंक सल्फेट 125 किलोग्राम कर प्रयोग करना लाभकारी होता है। 

खरपतवार नियंत्रण के लिए ताइवी गुरमा, कोनोबीडर या रोटरी बीडर का प्रयोग करना रासायनिक नियंत्रण की तुलना में बेहतर है। इस तरह के उपाय करके किसानों ने 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन की सीमा के स्थान पर 50 से 70 क्विंटल तक उत्पादन लेना प्रारंभ कर दिया है।

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