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Tuesday, May 11, 2010

गांवों में आपात खर्चों में मदद के लिये ग्राम राहत कोष खुलेंग

 आजीविका परियोजना की पहल पर
सुदूर जनजातीय बहुल तीन हजार गांवों में गरीब परिवारों को आपात खर्चों में मदद देने के लिये ग्राम राहत कोष खोले जायेंगे। शादी, अंतिम संस्कार, दुर्घटना के बाद इलाज खर्च जैसी आकस्मिक जरूरतों में गरीब परिवारों को राहत कोष से मदद होगी।
मध्यप्रदेश ग्रामीण आजीविका परियोजना के अंतर्गत नौ जनजातीय बहुल जिलों धार, झाबुआ, बडवानी, आलीराजपुर, मण्डला, डिण्डौरी, शहडोल, अनूपपुर और श्योपुर के 650 गांवों में सफलता पूर्वक ग्राम राहत कोष संचालित हैं। ग्राम राहत कोषों के सफल संचालन एवं अच्छे परिणाम को देखते हुए परियोजना समन्वयक श्री एल. एम. बेलवाल ने परियोजना के सभी तीन हजार गांवों में ग्राम राहत कोष स्थापित करने के निर्देश दिये हैं।

ग्रामीण समुदाय ने अपने गांवों में इन ग्राम राहत कोषों के अलग-अलग नाम दिये हैं। झाबुआ में इसे आपदा राहत कोष, बड़वानी में ''पूनम की पेटी'', शहडोल में अपना कोष, श्योपुर में आकस्मिक कोष और मंडला में ग्राम राहत कोष कहा गया है।

आजीविका परियोजना की पहल पर ग्राम राहत कोष को ग्रामीण समुदाय ने स्वयं स्थापित किया है। इस संचालन ग्राम स्तरीय समिति करती है। समिति के सदस्य गांव में हर समय उपलब्ध रहते हैं। ग्राम राहत कोष के लिये प्रारंभिक धनराशि ग्राम कोष से मिलती है जहां परियोजना की धनराशि जमा रहती है।

ग्राम सभा की बैठक में सर्वसम्मति से ग्राम कोष की धनराशि से थोडी सी धनराशि निकालकर ग्राम राहत कोष का गठन होता है। वर्तमान में ग्राम राहत कोष में पांच से दस हजार रूपये तक होते हैं। गांव के संपन्न लोग भी योगदान देते हैं।

ग्राम राहत कोष का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अचानक आये संकट के समय साहूकारों से ज्यादा ब्याज पर कर्जा लेने से मुक्ति मिल गई है। दूसरा यह कि गरीब परिवारों को बिना किसी औपचारिकता के बिना ब्याज पर पैसे मिल जाते हैं। ग्राम राहत कोष प्रबंधन समितियों ने नियम-कानून बना लिये हैं। प्रत्येक गांव के लिये अलग-अलग है।

मण्डला जिले में जलतरा गांव की राखिया बाई बताती हैं कि उनकी बेटी के लिये रिश्ते की बात चल रही थी। लड़के वालों की तरफ से रिश्ता मंजूर होने की खबर आई साथ ही शादी की तारीख भी। ऐसी स्थिति में ग्राम राहत कोष से एक हजार रूपये तक की मदद तुरंत हो गई। 

अत्यंत गरीब राखिया बाई के लिये इतना काफी था। बाकी मदद गांव के संपन्न लोगो ने की। इसी प्रकार मनिया गांव का सुखदेव मरावी किसी तरह लकड़ियां बीन कर परिवार का पेट पालता है। एक दिन पेड़ से गिर गया। पैर टूट गया। उसकी पत्नी छत्तो बाई के मांगने पर ग्राम राहत कोष से 800 रूपये तुरंत मिल गये। समय रहते पैर पर प्लास्टर चढ़ा। सुखदेव अब ठीक है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब संकट के समय छोटी-छोटी धनराशि से कई जिन्दगियां बिखरने से बच गईं।

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