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Thursday, April 22, 2010

भारत का किसान है सर्वश्रेष्ठ कृषि वैज्ञानिक

 कृषि को लाभकारी बनाने के लिये जैविक खेती ही सर्वोत्तम
किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया ने कहा है कि मध्यप्रदेश में कृषि को लाभकारी बनाने के लिये जैविक खेती ही सर्वोत्तम उपाय है। जैविक खेती से कृषि लागत में कमी आने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। 

कृषि मंत्री डॉ. कुसमरिया मंगलवार को सतना जिले के चित्रकूट में आयोजित कृषि अधिकारियों के राज्य स्तरीय दो दिवसीय जैविक खेती प्रशिक्षण के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। कृषि अधिकारी संभाग में कम से कम एक जैविक ग्राम बनायें और प्रत्येक गाँव में कम से कम दस किसानों को जैविक खेती के लिये प्रोत्साहित करें।

जैविक कृषि से लागत कम होने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण से काफी हद तक छुटकारा।

जैविक कृषि भारत की प्राचीन कृषि पद्धति


कृषि विकास मंत्री डॉ. कुसमरिया ने कहा कि भारत का किसान सर्वश्रेष्ठ कृषि वैज्ञानिक है। प्रगति की अंधाधुंध दौड़ में भारतीय किसान अपनी प्राचीन कृषि पद्धति से दूर चला गया है। खेतों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अधिक मात्रा के प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति लगातार कम होती जा रही है। 
आज हालात यह है कि रासायनिक कीटनाशक खाद के लगातार प्रयोग से फलों, सब्जियों एवं अनाज से मनुष्य के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहा है। डॉ. कुसमरिया ने कहा कि किसानों के मित्र पशु-पक्षी लगातार विलुप्त होते जा रहे हैं। प्राकृतिक असंतुलन से दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने जैविक खेती की पद्धति से ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को कम करने की बात कही।

कृषि विकास मंत्री डॉ. कुसमरिया ने कहा कि राज्य सरकार ने मध्यप्रदेश को जैविक प्रदेश बनाने का संकल्प लिया है। उन्होंने कृषि अधिकारियों से कहा कि वे अपने संभाग में कम से कम एक जैविक ग्राम बनाये तथा प्रत्येक गाँव में 10-10 किसानों को जैविक पद्धति अपनाने के लिये प्रोत्साहित करें। 
डॉ. कुसमरिया ने कहा कि प्रदेश में जैविक पद्धति से खेती करने वाले किसानों की सूची तैयार की जा रही है। उनका शीघ्र सम्मेलन बुलाया जायेगा। कृषि मंत्री ने चित्रकूट क्षेत्र में नानाजी देशमुख के निर्देशन में जैविक खेती और ग्राम स्वावलम्बन के हुये कार्यों की सराहना की।

प्रशिक्षण सत्र में दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव श्री भरत पाठक ने कृषि विज्ञान केन्द्र मझगवां एवं गनीवां में किये गये प्रयोग और आस-पास के किसानों द्वारा अपनाई गई जैविक पद्धति, गौपालन, उद्यानिकी, डेयरी, ग्रामीण उद्यमिता के बारे में जानकारी दी। 
प्रशिक्षण कार्यक्रम में संभागों के संयुक्त संचालक एवं जिलों के उप संचालक कृषि ने अपने-अपने क्षेत्र के जैविक खेती प्रयोग एवं अनुभवों के बारे में जानकारी दी। प्रशिक्षण में पृथ्वी और चन्द्र की स्थिति अनुसार खेती की प्रक्रियायें, गाय की सिंग खाद, अमृतपानी, संजीवनी तैयार करने की विधियों की जानकारी दी गयी। 
कृषि वैज्ञानिक डॉ. आर.एल. सिकरवार ने औषधीय पौधों की जैविक खेती, डॉ. विजय प्रताप सिंह ने जैविक फसलों की मूल्य वृद्धि, डॉ. वेदप्रकाश सिंह ने जल स्त्रोतों के सामुदायिक प्रबंधन और संभावित विकास, डॉ. एस.एस. कौशिक ने जैविक खेती की आर्थिक महत्ता और लागत लाभ के बारे में विस्तार से जानकारी दी। प्रशिक्षण के बाद अधिकारियों ने दीनदयाल शोध संस्थान के विभिन्न प्रकल्पो, गौपालन, डेयरी, उद्यमिता की गतिविधियों सहित मझगवां कृषि विज्ञान केन्द्र का भ्रमण कर अवलोकन किया।

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