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Sunday, September 20, 2009

हरित क्रांति की दिशा में पावर टिलर (मिनी ट्रेक्टर)

ताबड़तोड़ पावरटिलर (मिनी टेक्टर) वितरण करने के कृषि विभाग के कदम से शहडोल के गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले आदिवासियों की काश्तकारी में चमक लौट आई है और उनके लिए यह वरदान साबित हुए हैं। उनकी आथिर्क एवं सामाजिक हैसियत में सुधार आया है।
इस बदलाव की मिसाल बने हैं शहडोल जिले के दूरवतीर् और पिछड़े गांवों के 60 स्व-सहायता समूहों के 639 गरीब आदिवासी काश्तकार, जिनने पावर टिलर की मदद तथा अपनी मेहनत और लगन से अपनी फसल का उत्पादन दो गुना कर लिया है।
राज्य सरकार ने तकनीकी दक्षता वाले पावर टिलर देकर हताश गरीब आदिवासी काश्तकारों को नई रोशनी दी है। इसे अपने खेतों में चलाकर आदिवासी काश्तकार बिना किसी लागत के अपने खेतों की जुताई और फसलों की मचाई कर सकते हैं।
पावर टिलर का खेतों में प्रचलन बढ़ने से निश्चित रूप से आदिवासी काश्तकार समूहों का कारोबार बढ़ा है। इन काश्तकारों के समूहों में जैसिंहनगर के खुशरबा के एक ज्वालामुखी स्व-सहायता समूह के आठ काश्तकार सदस्यों के 30 एकड खेतों में जुताई होती है। समूह के अध्यक्ष श्री मानसिंह बताते हैं कि पहले बैलों से चार एकड़ में जुताई करने पर पन्द्रह-बीस दिन का समय लग जाता था।
पर अब पावर टिलर से एक ही दिन में जुताई हो जाती है। साथ ही दूसरों के खेतों में जुताई करने और खाद, मिट्टी, ईटों की ढुलाई करने से अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती है।
खेतों में जुताई और मचाई करने तथा काश्तकारों की बेहतरी के लिए कृषि लागत व समय बचाने के साथ पावर टिलर अन्य तरीकों से कमाई का उपयुक्त माध्यम भी बन रहे हैं। इससे इन काश्तकारों के खेतों की माटी गुलजार हो गई है। आमतौर पर साधनांे के अभाव में गरीब काश्तकार बैलों से ही खेतों में जुताई करते थे। असिंचित क्षेत्र में सिर्फ एक ही फसल ले पाते थे।
इस एक फसल में भी उत्पादन कम होने से जो मिला उसी से काम चलाना पड़ता था। गुजरबसर के लिए उन्हें दूसरों के यहां दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ती थी। जिले के छत्तीसगढ़ की सीमा पर बसे गांव बरगवां के पन्द्रह सदस्यीय सिंह वाहिनी स्व-सहायता समूह के अध्यक्ष बिहारी पाव बताते है कि पहले बैलों से खेतों में जुताई करने से उतना उत्पादन नहीं हो पाता था। लिहाजा दूसरों के यहां मजदूरी करके आजीविका चलानी पड़ती थी। अब पावर टिलर से खेतों में उत्पादन दो गुना हो जाने से आय बढ़ गई है। पावर टिलर का अन्य कार्यो में भी उपयोग होने से आमदनी बढ़ गई है। उन्हें अब दूसरों के यहां मजदूरी करने नहीं जाना पड़ता।
गरीब आदिवासी काश्तकारों की बेहतरी के लिए जिले में 60 स्व-सहायता समूहों के 639 काश्तकारों को 95.28 लाख रूपये के अनुदान पर 60 नग पावरटिलर अब तक दिए जा चुके हैं। इनके साथ ट्राली, कैजव्हील, सीडड्रिल आदि भी दिए गए हैं। इससे इनने स्वयं की 1752 एकड़ भूमि पर जुताई कर आमदनी बढ़ाई है। ये अन्य काश्तकारो की करीब 1800 एकड़ भूमि पर भी जुताई कर कमाई कर रहे हैं।
जब ये बैलों से जुताई करते थे तो खाद, बीज आदि की समय पर व्यवस्था नहीं कर पाते थे। साथ ही खेतों की जुताई, मताई (मचाई) कार्य समय पर तथा अच्छे तरीके से नहीं कर पाने के कारण बोआई व रोपाई कार्य में भी प्राय: देरी हो जाया करती थी, जिससे गरीब आदिवासी काश्तकार अधिकतम मात्र तीन-चार क्विं0 प्रति एकड़ धान का औसत उत्पादन ही ले पाते थे।
पर अब यही उत्पादन बढ़कर छ:-सात क्विं0 प्रति एकड़ हो गया है। धान की उपज भी बढ़कर दो गुनी हो गई हैं, जिससे उन्हें चार-पांच हजार रूपये प्रति एकड़ अतिरिक्त आय अजिर्त हो रही है। जिनके यहां सिंचाई के साधन है, वे अब दो फसलें ले रहे हैं। इन 60 स्व-सहायता समूहों के 639 काश्तकारों को 1752 एकड़ जमीन पर धान की खेती करने पर 25 से 30 लाख रूपये की अतिरिक्त आय होने से उनके जीवन में खुशहाली आ गई है।
हरित क्रांति के संवाहक बने हुए पावरटिलर की उपयोगिता के बार में शहडोल के उपसंचालक कृषि श्री के.एम. टेकाम कहते हैं कि पावरटिलर के इस्तेमाल से गरीब आदिवासी काश्तकारों की माली हालत में सुधार हो रहा है। वे अब अच्छी खेती कर रहे हैं और दूसरों के यहां किराए पर पावर टिलर देकर भी आमदनी कर रहे हैं। और भी जरूरतमंद गरीब आदिवासी काश्तकारों को अनुदान पर पावरटिलर मुहैया कराए जाएगें।

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