खाद व बीज के पर्याप्त भंडारण किए जाने के कृषि के विभाग के तमाम दावों के बावजूद प्रदेश भर से किसानों के खाद व बीज के संकट से जूझने की खबरें आ रहीं हैं। सागर के किसान भीऐसी किल्लत से महफूज नहीं हैं। जिला मुख्यालय के आस पास अच्छे हो सकते हें लेकिन तहसील व विकासखण्ड स्तर से खाद की किल्लत होने की आवाजें लगातार उठ हीं हैं।
किसान डीएपी खाद नहीं मिलने की वजह से परेशान हो रहे हें। खाद का अपर्याप्त भडारण किए जाने के वजह से यह न तो सहकारी समितियों मे उपलब्ध है और नहीं खुले बाजार में।
कृषि विभाग के मुताबिक रबी सीजन मे दलहन फसलोंचना और मसूर के बेहतर उत्पादन के लिए डीएपी खाद फास्फोरस की ज्यादा मात्रा मौजूद होने की वजह से ज्यादा फायदेमंद साबित होती है। अभी तक सागर, रीवा, भोपाल व ग्वालियर संभाग के किसानों से खाद की किल्लत होने की शिकायतें मिलीं हैं।
संचालिक कृषि मप्र के मुताबिक खाद की थोड़ी बहुत कमी तो हरदम बनी रहती है। सरकार ने पूरे इंतजाम किए है। भारत सरकार से रैक आने में एक दो दिन की देरी होने की वजहसे किसानों को थोड़ी किल्लत महसूस हो रही है।
गौरतलब है कि इस साल रबी सीजन मे 4 लाख 65 हजार 51 मीट्रिक टन डीएपी खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है। इसमें विपणन संघ के माध्यम से 1 लाख 96 हजार 576 मीट्रिक टन, एमपी एग्रो के माध्यम से 34 हजार 690 मीट्रिक टन और निजी तौर पर 2 लाख 33 हजार 781 मीट्रिक टन डीएपी खाद किसानों को बेची जानी है। लेकिन फिलहाल किसानों को इसकी कमी का सामना पड़ रहा है।
कृषि विभाग के मुताबिक रबी सीजन मे दलहन फसलोंचना और मसूर के बेहतर उत्पादन के लिए डीएपी खाद फास्फोरस की ज्यादा मात्रा मौजूद होने की वजह से ज्यादा फायदेमंद साबित होती है। अभी तक सागर, रीवा, भोपाल व ग्वालियर संभाग के किसानों से खाद की किल्लत होने की शिकायतें मिलीं हैं।
संचालिक कृषि मप्र के मुताबिक खाद की थोड़ी बहुत कमी तो हरदम बनी रहती है। सरकार ने पूरे इंतजाम किए है। भारत सरकार से रैक आने में एक दो दिन की देरी होने की वजहसे किसानों को थोड़ी किल्लत महसूस हो रही है।
गौरतलब है कि इस साल रबी सीजन मे 4 लाख 65 हजार 51 मीट्रिक टन डीएपी खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है। इसमें विपणन संघ के माध्यम से 1 लाख 96 हजार 576 मीट्रिक टन, एमपी एग्रो के माध्यम से 34 हजार 690 मीट्रिक टन और निजी तौर पर 2 लाख 33 हजार 781 मीट्रिक टन डीएपी खाद किसानों को बेची जानी है। लेकिन फिलहाल किसानों को इसकी कमी का सामना पड़ रहा है।
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