बुंदेलखण्ड क्षेत्र मे काफी समय बाद अच्छी बारिश होने की वजह से किसानों के चेहरे खिल गए हैं। खरीफ के सीजन मे अच्छी फसल लेने की आस से वे काम मे जुट गए हैं। लेकिन फसलों को कीटों से बचाने के लिए भी खास ध्यान देने की जरुरत है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस सीजन मे फसलों को कमलिया कीट से बचाना होता है। बोलचाल की भाषा मे किसान इसे घोषला, कुहरा या कंबल कीड़ा कहते हैं। यह कीड़ा भरपूर बारिश होने के कुछ समय बाद नदी-नालों के पास लगी पत्तियों पर अण्डे दे देता है। पूरे शरीर पर घने काले बालों से ढ़के रहने की वजह से ही यह कमलिया कीड़ा कहलाता है।
उपसंचालक कृषि आईपी पटेल ने बताया कि यह कीट बहू फसल भक्षी कीट है। यह मक्का, ज्वार, उड़द, मुंग, तिल, सन व सोयाबीन की फसलों को काफी नुकसान पहुंचाता है। हल्के पीले रंग के चमकीले अण्डों मे से निकलते समय इसका आकार छोटा व रंग भूरा होता है। लेकिन बड़ी इल्ली बनने पर इनका रंग काला व पीला हो जाता है। परिपक्व होने के बाद ये इल्लियां जमीन के अंदर प्रवेश कर रेशमी जाल बनाकर कत्थई रंग की शंखिंयों मे बदल जातीं हैं और फिर मेढ़ों के आसपास के छायादार पेड़ों की जड़ों मे घुस जातीं हैं।
श्री पटेल के मुताबिक इस कीट पर नियंत्रण की तीन उपाय हैं- जैविक, यांत्रिक व रसायनिक। जैविक उपायों के तहत नीम के तेल या पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। इसमें 15 लीटर पानी मे 75 मिमी नीम का तेल मिलाकर पंप से प्रभावित फसल पर छिड़काव किया जाता है या फिर नीम की पत्तियों को दस गुना पानी मे चार से पांच दिन के लिए भिगोकर रख देते हैं बाद मे उसी पानी का फसलों पर छिउ़काव करते हें। इसके अलावा 5 लीटर मठे मे एक किलो नीम की पत्ती व धतूरे के पत्ते डालकर 10 दिन तक सड़ने दें या फिर 5 किलो नीम की पत्तियों को 3 लीटर पानी मे तब तक उबालें जब तक घोल की मात्रा घटकर आधी न रह जाए, फिर इसे 150 लिटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें।
यांत्रिक उपाय मे खेत मे प्रकाश प्रपंच लगाएं ताकि वयस्क कीट आकर्षित हो सकें। फिर शुरुआती अवस्था मे ही इन्हें पत्तियों सहित तोड़कर नष्ट कर दें।
रसायनिक उपाय में इण्डोसल्फान 35ईसी 1000-1250 मिली प्रति हैक्टेयर, इण्डोसल्फान 4 मिलि, क्यूनालफास 1.5 मिली, पेराथयान 2 मिली, डक्ट 25 किग्रा० प्रति हैक्टैयर व क्लोरोपायरीफास 20 मिली, इसी 1250-1500 मिली प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करके इस कीट से बचा जा सकता है।
उपसंचालक कृषि आईपी पटेल ने बताया कि यह कीट बहू फसल भक्षी कीट है। यह मक्का, ज्वार, उड़द, मुंग, तिल, सन व सोयाबीन की फसलों को काफी नुकसान पहुंचाता है। हल्के पीले रंग के चमकीले अण्डों मे से निकलते समय इसका आकार छोटा व रंग भूरा होता है। लेकिन बड़ी इल्ली बनने पर इनका रंग काला व पीला हो जाता है। परिपक्व होने के बाद ये इल्लियां जमीन के अंदर प्रवेश कर रेशमी जाल बनाकर कत्थई रंग की शंखिंयों मे बदल जातीं हैं और फिर मेढ़ों के आसपास के छायादार पेड़ों की जड़ों मे घुस जातीं हैं।
श्री पटेल के मुताबिक इस कीट पर नियंत्रण की तीन उपाय हैं- जैविक, यांत्रिक व रसायनिक। जैविक उपायों के तहत नीम के तेल या पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। इसमें 15 लीटर पानी मे 75 मिमी नीम का तेल मिलाकर पंप से प्रभावित फसल पर छिड़काव किया जाता है या फिर नीम की पत्तियों को दस गुना पानी मे चार से पांच दिन के लिए भिगोकर रख देते हैं बाद मे उसी पानी का फसलों पर छिउ़काव करते हें। इसके अलावा 5 लीटर मठे मे एक किलो नीम की पत्ती व धतूरे के पत्ते डालकर 10 दिन तक सड़ने दें या फिर 5 किलो नीम की पत्तियों को 3 लीटर पानी मे तब तक उबालें जब तक घोल की मात्रा घटकर आधी न रह जाए, फिर इसे 150 लिटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें।
यांत्रिक उपाय मे खेत मे प्रकाश प्रपंच लगाएं ताकि वयस्क कीट आकर्षित हो सकें। फिर शुरुआती अवस्था मे ही इन्हें पत्तियों सहित तोड़कर नष्ट कर दें।
रसायनिक उपाय में इण्डोसल्फान 35ईसी 1000-1250 मिली प्रति हैक्टेयर, इण्डोसल्फान 4 मिलि, क्यूनालफास 1.5 मिली, पेराथयान 2 मिली, डक्ट 25 किग्रा० प्रति हैक्टैयर व क्लोरोपायरीफास 20 मिली, इसी 1250-1500 मिली प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करके इस कीट से बचा जा सकता है।
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