बुंदेलखण्ड मे सोयाबीन की फसल पर इल्लियों का हमला हो रहा है। पिछले हफ्ते कृषि वैज्ञानिकों ने सागर जिले की बण्डा तहसील के कुछ गांवों के दौरे किया। जहां उन्हें सोयाबीन की फसलें सेमीलूपर, गर्डलवीटल व अन्य कीटों के हमले से ग्रस्त मिलीं।
क़ृषि वैज्ञानिक एचएस राय ने बताया कि बण्डा विकासखण्ड के ग्राम फतेहपुर मौजा, झारगी, दलपतपुर, बेई, अमरमऊ व बीला मे सोयाबीन के उन खेतों मे कीटों का प्रकोप ज्यादा देखने को मिला जिनमें बुवाई परंपरागत ढंग से की गई थी। ऐसे खेतों की 30 से 40 फीसदी तक सोयाबीन की फसल पर कीटों का प्रकोप है। लेकिन जिन खेतों मे किसानों ने सोयाबीन की बुवाई 45 सेमी कतार से कतार की दूरी पर की है उन खेतों मे केवल 5 से 10 फीसदी फसल पर कीटों का हमला देखने को मिला है।
इल्लियों की चपेट मे आई सोयाबीन की फसल के उपचार के सिलसिले मे कृषि विकास अधिकारी एके पाठक ने बताया कि पत्ती खाने वाले कीडों, तना छेदक, गर्डलवीटल एवं सफेद मक्खी के लिए टाईजोफोस 40ईसी 800एमएम दवा प्रति हैक्टेयर के हिसाब से 600 से 700 लीटर पानी के घोल बनाकर छिडकाव किया जाना चाहिए।
लेकिन सिर्फ पत्ती खाने वाले कीडों के लिए क्विनलाफास 1.5 लीटर या क्लोरपायरी फास 1.5 लीटर या इण्डोसल्फान 1 लीटर या मेथोनिल 40एसपी एक किलो प्रति हैक्टेयर मे 600 से 700 लीटर पानी मे घोल बनाकर छिडकाव करना फायदेंमंद होगा। अगर एक बार कीटनाशक दवा के छिडकाव के बाद भी कीट का प्रकोप नजर आता है तो किसान भाई दवा बदलकर 15 दिन के बाद दोबारा छिडकाव करें।
कृषक वैज्ञानिक एचएस राय ने बताया कि गर्डलवीटल से प्रभावित पौधों के भागों को निकालकर, मसलकर मिट्टी मे नष्ट कर दें तथा नीम तेल 5 एमएल प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर 400 से 500 लीटर का घोल प्रति हैक्टैयर के हिसाब से छिडकाव करें।
इसके अलावा जांच दल ने इन कीटों के हमले से सोयाबीन की फसल बचाने के लिए एक अन्य उपाय भी किसानों को बताया। जिसके मुताबिक किसान तीन खाली मटकों का इंतजाम करे तथा एक एक मटके मे गौ मूत्र, गाय का मठा व नीम की पत्तियां 5 से 10 लीटर पानी भरकर डालें और मटकों को जमीन में गाड दें। फिर 15 से 20 दिनों के बाद हर मटके मे से 3-3 लीटर घोल लेकर उसे 100 से 150 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकड क्षेत्र के हिसाब से 10 दिन के अंतराल पर 3 छिडकाव करें।
इसी सिलसिले मे कृषि वैज्ञानिक श्री रावत ने बताया कि जिन किसानों के खेतों मे सोयाबीन की फसल पर कीटों के हमले का असर कम है वे ऐहतियात के तौर पर अपने खेतों मे चिडियों को बैठने के लिए सूखी झाडियां या टी आकार की 20 से 25 लकडी प्रति हैक्टेयर खेत में लगाएं। इन्होने किसानों को चेताया कि अगर समय रहते इन कीटों का उपचार नहीं किया तो सोयाबीन की फसल बुंदेलखण्ड मे इस बार फिर अफलन का शिकार हो सकती है।
क़ृषि वैज्ञानिक एचएस राय ने बताया कि बण्डा विकासखण्ड के ग्राम फतेहपुर मौजा, झारगी, दलपतपुर, बेई, अमरमऊ व बीला मे सोयाबीन के उन खेतों मे कीटों का प्रकोप ज्यादा देखने को मिला जिनमें बुवाई परंपरागत ढंग से की गई थी। ऐसे खेतों की 30 से 40 फीसदी तक सोयाबीन की फसल पर कीटों का प्रकोप है। लेकिन जिन खेतों मे किसानों ने सोयाबीन की बुवाई 45 सेमी कतार से कतार की दूरी पर की है उन खेतों मे केवल 5 से 10 फीसदी फसल पर कीटों का हमला देखने को मिला है।
इल्लियों की चपेट मे आई सोयाबीन की फसल के उपचार के सिलसिले मे कृषि विकास अधिकारी एके पाठक ने बताया कि पत्ती खाने वाले कीडों, तना छेदक, गर्डलवीटल एवं सफेद मक्खी के लिए टाईजोफोस 40ईसी 800एमएम दवा प्रति हैक्टेयर के हिसाब से 600 से 700 लीटर पानी के घोल बनाकर छिडकाव किया जाना चाहिए।
लेकिन सिर्फ पत्ती खाने वाले कीडों के लिए क्विनलाफास 1.5 लीटर या क्लोरपायरी फास 1.5 लीटर या इण्डोसल्फान 1 लीटर या मेथोनिल 40एसपी एक किलो प्रति हैक्टेयर मे 600 से 700 लीटर पानी मे घोल बनाकर छिडकाव करना फायदेंमंद होगा। अगर एक बार कीटनाशक दवा के छिडकाव के बाद भी कीट का प्रकोप नजर आता है तो किसान भाई दवा बदलकर 15 दिन के बाद दोबारा छिडकाव करें।
कृषक वैज्ञानिक एचएस राय ने बताया कि गर्डलवीटल से प्रभावित पौधों के भागों को निकालकर, मसलकर मिट्टी मे नष्ट कर दें तथा नीम तेल 5 एमएल प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर 400 से 500 लीटर का घोल प्रति हैक्टैयर के हिसाब से छिडकाव करें।
इसके अलावा जांच दल ने इन कीटों के हमले से सोयाबीन की फसल बचाने के लिए एक अन्य उपाय भी किसानों को बताया। जिसके मुताबिक किसान तीन खाली मटकों का इंतजाम करे तथा एक एक मटके मे गौ मूत्र, गाय का मठा व नीम की पत्तियां 5 से 10 लीटर पानी भरकर डालें और मटकों को जमीन में गाड दें। फिर 15 से 20 दिनों के बाद हर मटके मे से 3-3 लीटर घोल लेकर उसे 100 से 150 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकड क्षेत्र के हिसाब से 10 दिन के अंतराल पर 3 छिडकाव करें।
इसी सिलसिले मे कृषि वैज्ञानिक श्री रावत ने बताया कि जिन किसानों के खेतों मे सोयाबीन की फसल पर कीटों के हमले का असर कम है वे ऐहतियात के तौर पर अपने खेतों मे चिडियों को बैठने के लिए सूखी झाडियां या टी आकार की 20 से 25 लकडी प्रति हैक्टेयर खेत में लगाएं। इन्होने किसानों को चेताया कि अगर समय रहते इन कीटों का उपचार नहीं किया तो सोयाबीन की फसल बुंदेलखण्ड मे इस बार फिर अफलन का शिकार हो सकती है।
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