जायद फसलों के तैयार होने की अवधि 50 से 60 दिन
मध्यप्रदेश में रबी की फसल स्थिति काफी अच्छी है। इसकी वजह प्रदेश में अक्टूबर, नवम्बर एवं दिसम्बर में सही अंतराल से हुई बारिश का होना रहा है। प्रदेश में रबी सीजन में इस वर्ष लगभग 95 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी की बोनी की गयी थी। प्रदेश में रबी के सामान्य क्षेत्रफल से लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी की अतिरिक्त बोनी की गयी।
प्रदेश में प्रमुख रूप से रबी सीजन में गेहूँ की बोनी 42.62 लाख हेक्टेयर में तथा चने की बोनी 32.33 लाख हेक्टेयर में की गयी थी। अच्छे मौसम को देखते हुये प्रदेश में गेहूँ एवं चने का रिकार्ड उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
रबी सीजन में खेतों में कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन फसल लेने की सलाह
जल संरचनाओं में पानी की अच्छी उपलब्धता के कारण जायद फसलें लिया जाना लाभकारी होगा
ग्रीष्मकालीन फसलों की अवधि 50 से 60 दिन की
किसान कल्याण विभाग ने रबी फसलों की अच्छी स्थिति के बाद प्रदेश में किसानों के लिये ग्रीष्म काल में जायद फसलों के उत्पादन की अच्छी संभावना बताई है। कृषि अधिकारियों ने कहा है कि प्रदेश के कृषक खाली खेतों में अथवा रबी की शीघ्र बोई गयी फसल काटने के बाद मूँग, उड़द, सब्जियों तथा चारे की फसलों की बोनीकर अतिरिक्त लाभ ले सकते हैं। जायद फसलों के तैयार होने की अवधि 50 से 60 दिन की होती है। कृषि अधिकारियों का कहना है कि भूमि संरक्षण और मिट्टी की उर्वरता की दृष्टि से भी इन फसलों का बोया जाना उपयोगी होगा। कृषि उत्पादन आयुक्त श्री एम.के. राय ने पिछले दिनों मंत्रालय में आयोजित कृषि अधिकारियों की बैठक में रबी फसलों की स्थिति एवं संभावित रबी उत्पादन की समीक्षा की थी। कृषि उत्पादन आयुक्त श्री राय ने कृषि अधिकारियों को निर्देश दिये कि वे प्रदेश में किसानों को जायद फसल बोने के लिये अधिक से अधिक प्रोत्साहित करें। संचालक किसान कल्याण डॉ. डी.एन. शर्मा ने बताया कि खाली खेतों में मूँग की खेती के लिये फरवरी के दूसरे सप्ताह से मार्च के तीसरे सप्ताह का समय सबसे उपयुक्त रहता है। प्रदेश में इस वर्ष अच्छी बारिश के कारण जल संरचनाओं में पानी की उपलब्धता अच्छी है। इसका फायदा कृषक गर्मी के मौसम की अल्पकालीक फसलें उड़द, सूरजमुखी, मक्का, चने की फसलें, लोबिया, ग्वार आदि की कम लागत पर सफल खेती कर सकते हैं। सब्जियों में वर्गी फसलें गिल्की, लोकी, खीरा, खरबूज, तरबूज आदि बोया जाना भी किसानों के लिये लाभकारी सिद्ध होगा।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जायद की फसल के रूप में दलहन फसलें बोया जाना कृषि भूमि की उर्वरता वृद्धि के लिये काफी फायदेमंद हैं। जायद फसलें वायुजनित मिट्टी के क्षण को कम करती हैं और प्राकृतिक नत्रजन बढ़ाती हैं। कृषि विशेषज्ञों ने कहा है कि हरदा, होशंगाबाद एवं नर्मदा नदी से जुड़े जिलों के ग्रामीण क्षेत्रो में ग्रीष्मकालीन खेती काफी लाभकारी होगी। किसान कल्याण विभाग ने मैदानी अधिकारियों को ग्रीष्मकालीन फसल लिये जाने के संबंध में किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन दिये जाने के निर्देश दिये हैं।
प्रदेश में प्रमुख रूप से रबी सीजन में गेहूँ की बोनी 42.62 लाख हेक्टेयर में तथा चने की बोनी 32.33 लाख हेक्टेयर में की गयी थी। अच्छे मौसम को देखते हुये प्रदेश में गेहूँ एवं चने का रिकार्ड उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
रबी सीजन में खेतों में कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन फसल लेने की सलाह
जल संरचनाओं में पानी की अच्छी उपलब्धता के कारण जायद फसलें लिया जाना लाभकारी होगा
ग्रीष्मकालीन फसलों की अवधि 50 से 60 दिन की
किसान कल्याण विभाग ने रबी फसलों की अच्छी स्थिति के बाद प्रदेश में किसानों के लिये ग्रीष्म काल में जायद फसलों के उत्पादन की अच्छी संभावना बताई है। कृषि अधिकारियों ने कहा है कि प्रदेश के कृषक खाली खेतों में अथवा रबी की शीघ्र बोई गयी फसल काटने के बाद मूँग, उड़द, सब्जियों तथा चारे की फसलों की बोनीकर अतिरिक्त लाभ ले सकते हैं। जायद फसलों के तैयार होने की अवधि 50 से 60 दिन की होती है। कृषि अधिकारियों का कहना है कि भूमि संरक्षण और मिट्टी की उर्वरता की दृष्टि से भी इन फसलों का बोया जाना उपयोगी होगा। कृषि उत्पादन आयुक्त श्री एम.के. राय ने पिछले दिनों मंत्रालय में आयोजित कृषि अधिकारियों की बैठक में रबी फसलों की स्थिति एवं संभावित रबी उत्पादन की समीक्षा की थी। कृषि उत्पादन आयुक्त श्री राय ने कृषि अधिकारियों को निर्देश दिये कि वे प्रदेश में किसानों को जायद फसल बोने के लिये अधिक से अधिक प्रोत्साहित करें। संचालक किसान कल्याण डॉ. डी.एन. शर्मा ने बताया कि खाली खेतों में मूँग की खेती के लिये फरवरी के दूसरे सप्ताह से मार्च के तीसरे सप्ताह का समय सबसे उपयुक्त रहता है। प्रदेश में इस वर्ष अच्छी बारिश के कारण जल संरचनाओं में पानी की उपलब्धता अच्छी है। इसका फायदा कृषक गर्मी के मौसम की अल्पकालीक फसलें उड़द, सूरजमुखी, मक्का, चने की फसलें, लोबिया, ग्वार आदि की कम लागत पर सफल खेती कर सकते हैं। सब्जियों में वर्गी फसलें गिल्की, लोकी, खीरा, खरबूज, तरबूज आदि बोया जाना भी किसानों के लिये लाभकारी सिद्ध होगा।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जायद की फसल के रूप में दलहन फसलें बोया जाना कृषि भूमि की उर्वरता वृद्धि के लिये काफी फायदेमंद हैं। जायद फसलें वायुजनित मिट्टी के क्षण को कम करती हैं और प्राकृतिक नत्रजन बढ़ाती हैं। कृषि विशेषज्ञों ने कहा है कि हरदा, होशंगाबाद एवं नर्मदा नदी से जुड़े जिलों के ग्रामीण क्षेत्रो में ग्रीष्मकालीन खेती काफी लाभकारी होगी। किसान कल्याण विभाग ने मैदानी अधिकारियों को ग्रीष्मकालीन फसल लिये जाने के संबंध में किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन दिये जाने के निर्देश दिये हैं।
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