पांच वर्षों में 76.09 करोड़ रूपये का होगा व्यय
राज्य शासन ने औषधीय एवं सुगंधित पौधों के विकास के लिये रणनीति वर्ष 2009-10 से 2013-14 अनुमोदित की है। पिछली रणनीति के अनुभवों के आधार पर नयी रणनीति में प्रदेश के सभी 11 कृषि जलवायु क्षेत्रों में न्यूनतम एक-एक औषधीय कच्चा माल उत्पादन क्षेत्र तथा प्रमाणीकृत प्रसंस्करण केन्द्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।
इन प्रयासों से निजी क्षेत्र में औषधीय कृषि क्षेत्रफल 25 हजार हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2014 तक 60 हजार हेक्टेयर होगा। प्रदेश के औषधीय एवं सुगंधित पौधों का उत्पादन एक लाख क्विंटल तक हो जाना संभावित है। इस रणनीति पर आगामी पांच वर्षों में 76.09 करोड़ रूपये का व्यय किया जाना संभावित है।
रणनीति के अनुश्रवण एवं समीक्षा के लिये मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय समन्वय समिति तथा प्रधान मुख्य वनसंरक्षक की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय कार्यकारी समिति का प्रावधान किया गया है।
उल्लेखनीय है कि औषधीय एवं सुगंधित पौधों के विकास की यह दूसरी रणनीति है। प्रथम रणनीति वर्ष 2004-05 से 2008-09 के लिये स्वीकृत की गयी थी। वन मंत्री श्री सरताज सिंह की विशेष रूचि एवं प्रयासों से राज्य शासन द्वारा इस पांच वर्षीय रणनीति की स्वीकृति जारी की गयी है। अध्यक्ष, लघु वनोपज संघ श्री विश्वास सारंग द्वारा राज्य की औषधीय एवं सुगंधित पौधा विकास की रणनीति का राज्य शासन द्वारा मंजूर किये जाने पर आभार व्यक्त किया।
वर्तमान रणनीति में निजी क्षेत्र में औषधीय को कृषि को बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया है। अगले पांच वर्षों में जैविक औषधीय कृषि के लिये 8 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में संविदा कृषि करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके लिये राष्ट्रीय औषधीय पौधा बोर्ड, भारत शासन से अनुदान सहायता प्राप्त की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि औषधीय एवं सुगंधित पौधों के विकास की यह दूसरी रणनीति है। प्रथम रणनीति वर्ष 2004-05 से 2008-09 के लिये स्वीकृत की गयी थी। वन मंत्री श्री सरताज सिंह की विशेष रूचि एवं प्रयासों से राज्य शासन द्वारा इस पांच वर्षीय रणनीति की स्वीकृति जारी की गयी है। अध्यक्ष, लघु वनोपज संघ श्री विश्वास सारंग द्वारा राज्य की औषधीय एवं सुगंधित पौधा विकास की रणनीति का राज्य शासन द्वारा मंजूर किये जाने पर आभार व्यक्त किया।
वर्तमान रणनीति में निजी क्षेत्र में औषधीय को कृषि को बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया है। अगले पांच वर्षों में जैविक औषधीय कृषि के लिये 8 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में संविदा कृषि करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके लिये राष्ट्रीय औषधीय पौधा बोर्ड, भारत शासन से अनुदान सहायता प्राप्त की जाएगी।
इसी प्रकार छोटे एवं सीमांत कृषकों को बहुस्तरीय रोपण द्वारा औषधीय कृषि अपनाने के लिये सहायता दिये जाने का लक्ष्य भी रखा गया है। वर्तमान रणनीति का एक विशेष बिन्दु यह भी है कि प्रदेश के समस्त कृषि क्षेत्र का सर्वे किया जाएगा साथ ही औषधीय एवं सुगंधित पौधों की कृषि एवं उत्पादन का आंकलन भी किया जाएगा।
इसी प्रकार औषधीय कृषि को बढ़ावा तभी मिल सकता है जबकि प्रसंस्करण एवं विपणन की पर्याप्त व्यवस्था हो। इसी को दृष्टिगत रखते हुये नयी रणनीति में प्रसंस्करण केन्द्रों की श्रृंखला का विस्तार एवं विपणन व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के लिये विभिन्न गतिविधियां संचालित करने का लक्ष्य रखा गया है।
इसी प्रकार औषधीय कृषि को बढ़ावा तभी मिल सकता है जबकि प्रसंस्करण एवं विपणन की पर्याप्त व्यवस्था हो। इसी को दृष्टिगत रखते हुये नयी रणनीति में प्रसंस्करण केन्द्रों की श्रृंखला का विस्तार एवं विपणन व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के लिये विभिन्न गतिविधियां संचालित करने का लक्ष्य रखा गया है।
इस रणनीति के एक अहम गतिविधि यह भी होगी कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की स्वास्थ्य सेवा में भूमिका को महत्व दिया जाएगा एवं पारंपरिक औषधीय ज्ञान का अभिलेखन एवं वेदों के पंजीयन का कार्य भी शुरू किया जाएगा। हर्बल गार्डन एवं होम हर्बल गार्डन की श्रृंखला के विस्तार के साथ-साथ शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चेतना जागृति तथा प्रचार-प्रसार की अनेक गतिविधियां संपादित की जाएगी।
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