प्रदेश में किसानों को जैविक खेती की और लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। मध्यप्रदेश को जैविक प्रदेश के रूप में पहचान दिलाने के लिये एक जन अभियान किसान कल्याण विभाग द्वारा छेड़ा हुआ है।
अधिकतर कृषक मनमाने तरीके से रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं, परिणाम स्वरूप खेतों की मृदा संरचना खराब हो रही हैं तथा उत्पादन स्थिर हो गया है। इस कमी को दूर करने के लिये 'नाडेप कम्पोस्ट' कारगर उपाय है।
महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के ग्राम पुसर के नारायण देवराज पण्डरी पांडे ने नाडेप कम्पोस्ट की नयी विधि विकसित की है। नाडेप कम्पोस्ट प्रदूषण मुक्त एवं रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में खेतों के लिये अच्छी खाद सिद्ध हुई है।
यह भूमि में रासायनिक उर्वरकों से उत्पन्न विकारों को दूर करने के साथ-साथ मृदा संरचना को भी सुधारती है। कम से कम गोबर का उपयोग करके अधिक से अधिक खाद बनाने की यह उत्तम पद्धति है। इस पद्धति द्वारा एक गाय के वार्षिक गोबर से 80 से 100 टन यानि लगभग 150 गाड़ी खाद बनाई जा सकती है।
इस खाद में नत्रजन 0.5 से 1.5 प्रतिशत, स्फुर 0.5 से 0.9 प्रतिशत, पोटाश 1.2 से 1.4 प्रतिशत व इसके अतिरिक्त अन्य सूक्ष्म मृदा पोषक तत्व भी पाये जाते हैं।
नाडेप खाद तैयार करने के लिये तीन प्रकार के नाडेप टांका बनाये जा सकते हैं। पक्के नाडेप टांका, कच्चे नाडेप टांका तथा भू नाडेप टांका। आकार में टांका 10 फीट लम्बा, 6 फीट चौड़ा एवं 3 फीट ऊंचा बनाया जाना चाहिये। इस विधि से तैयार खाद परम्परागत तरीके से तैयार की गई खाद से 3 से 4 गुना अधिक प्रभावशाली है।
परम्परागत खाद से नींदा बढ़ते हैं । जबकि नाडेप कम्पोस्ट से नींदा में वृद्धि नहीं होती। क्यों कि नाडेप कम्पोस्ट में गर्मी के कारण नींदा बीजों की उगने की शक्ति नष्ट हो जाती है। नाडेप कम्पोस्ट के उपयोग से कृषक रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाओं के दुष्परिणाम से बचेगा और विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी।
नाडेप कम्पोस्ट पद्धत्ति सम्पूर्णतया अप्रदूषणकारी है व इसके उपयोग से फ्यूमिक एसिड बनने की प्रक्रिया में गति आती है जिसके फलस्वरूप पर्याप्त ह्मूमस बनने की प्रकिया भूमि की जीवंतता को बनाये रखती है।
अधिकतर कृषक मनमाने तरीके से रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं, परिणाम स्वरूप खेतों की मृदा संरचना खराब हो रही हैं तथा उत्पादन स्थिर हो गया है। इस कमी को दूर करने के लिये 'नाडेप कम्पोस्ट' कारगर उपाय है।
महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के ग्राम पुसर के नारायण देवराज पण्डरी पांडे ने नाडेप कम्पोस्ट की नयी विधि विकसित की है। नाडेप कम्पोस्ट प्रदूषण मुक्त एवं रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में खेतों के लिये अच्छी खाद सिद्ध हुई है।
यह भूमि में रासायनिक उर्वरकों से उत्पन्न विकारों को दूर करने के साथ-साथ मृदा संरचना को भी सुधारती है। कम से कम गोबर का उपयोग करके अधिक से अधिक खाद बनाने की यह उत्तम पद्धति है। इस पद्धति द्वारा एक गाय के वार्षिक गोबर से 80 से 100 टन यानि लगभग 150 गाड़ी खाद बनाई जा सकती है।
इस खाद में नत्रजन 0.5 से 1.5 प्रतिशत, स्फुर 0.5 से 0.9 प्रतिशत, पोटाश 1.2 से 1.4 प्रतिशत व इसके अतिरिक्त अन्य सूक्ष्म मृदा पोषक तत्व भी पाये जाते हैं।
नाडेप खाद तैयार करने के लिये तीन प्रकार के नाडेप टांका बनाये जा सकते हैं। पक्के नाडेप टांका, कच्चे नाडेप टांका तथा भू नाडेप टांका। आकार में टांका 10 फीट लम्बा, 6 फीट चौड़ा एवं 3 फीट ऊंचा बनाया जाना चाहिये। इस विधि से तैयार खाद परम्परागत तरीके से तैयार की गई खाद से 3 से 4 गुना अधिक प्रभावशाली है।
परम्परागत खाद से नींदा बढ़ते हैं । जबकि नाडेप कम्पोस्ट से नींदा में वृद्धि नहीं होती। क्यों कि नाडेप कम्पोस्ट में गर्मी के कारण नींदा बीजों की उगने की शक्ति नष्ट हो जाती है। नाडेप कम्पोस्ट के उपयोग से कृषक रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाओं के दुष्परिणाम से बचेगा और विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी।
नाडेप कम्पोस्ट पद्धत्ति सम्पूर्णतया अप्रदूषणकारी है व इसके उपयोग से फ्यूमिक एसिड बनने की प्रक्रिया में गति आती है जिसके फलस्वरूप पर्याप्त ह्मूमस बनने की प्रकिया भूमि की जीवंतता को बनाये रखती है।
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