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Saturday, August 1, 2009

बुंदेलखण्ड मे सोयाबीन पर फिर मंडराने लगा है कीट प्रकोप का खतरा

बुंदेलखण्ड मे सूखे जैसे हालातों से जूझ रही सोयाबीन की फसल की मुश्किलें कम होतीं नजर नहीं रहीं हैं। कृषि विभाग द्वारा कीट रोग के बढ़ने की आंशका जताने से ही किसानों की नींद उड ने लगी है। सूखे की मार से सोयाबीन को बचाने की जुगत मे लगे अंचल के किसानों को अब फसल को कीट प्रकोप से बचाने के लिए भी मशक्कत करनी पड रही है।
उपसंचालक कृषि एवं अन्य अधिकारियों के एक दल ने हाल ही मे संभाग के कुछ क्षेत्रों का दौरा कर किसानों के खेतों मे सोयाबीन की फसल का निरीक्षण किया है। निरीक्षण के बाद दल ने मौसम के मौजूदा हालातों का हवाला देते हुए किसानों को सचेत किया है कि संभाग के अन्य जिलों छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ के मुकाबले सागर जिले में कीट रोग का प्रकोप बढ सकता है।
निरीक्षण दल को सागर जिले के विकासखण्ड राहतगढ के ग्राम भापेल, सीहोरा, भैसा, चंन्द्रपुरा मे फसलों के मुआयने पर कुछ खेतों मे इल्ली (सेमी लूपर) व कुछ खेतों मे कॉलरराड रोग का संक्रमण नजर आया है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल कीट का हमला खतरे की रेखा से नीचे होने की वजह से इससे जैविक उपायों के जरिए निपटा जा सकता है। इसके लिए किसानों को नीम के तेल के घोल व जैविक कीटनाशक बावेरिया के घोल का छिड काव करना चाहिए साथ ही खेतों मे टी आकार की डेढ -दो दर्जन लकडि यां लगाना फायदेमंद साबित होगा।
चंद्रपुर गांव मे कॉलरारराड रोग के संक्रमण होने की वजह से सोयाबीन के पौधे मुरक्षाकर सूख रहे हैं। उपसंचालक कृषि विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक जो किसान बीजों का उपचार नहीं कर पाए हैं वे एक किलो ट्राईकोडरमा को ५० किलों सड ी हुई गोबर खाद के साथ ६-७ दिन मिलाकर रखें व निंदाई के समय खेतों मे मिला कर फसल का बचाव कर सकते हैं। कृषि विभाग ने किसानों को कीट प्रकोप से निपटने के लिए ''समन्वित नाशी जीव प्रबंधन'' अपनाने की सलाह दी है।
गौरतलब है कि वर्ष २००७-०८ मे भी बुंदेलखण्ड में सूखे व कीट प्रकोप की वजह से सोयाबीन की फसल लगभग पूरी तरह से तबाह हो गई थी। इसके चलते प्रदेश सरकार को पीड़ित किसानों के लिए करोड ों रुपए क्षतिपूर्ति के रुप मे बांटने पड े थे। जबकि इस साल पिछले साल के करीब ३ लाख के मुकाबले ४ लाख हैक्टैयर के रकबे मे सोयाबीन की फसल ली जा रही है।

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